मंगलवार, 7 सितंबर 2010

५१-रामायण

                (२९ ) 
यों ही न कर जाया हुश्न व जमाल ,
तेरे हुश्न में है वाला का कमाल ,
नजर तू ज़रा जाने मन खुद पे दाल ,
तू क्या है हुआ तेरा ये कैसा हाल ,
तू महलों की रानी वनों में फिरे ,
तू चल साथ मेरे उन्हें छोड़ दे .
              ( ३० )
 उन्हें क्या पता हुश्न का क्या है मोल ,
सदा जौहरी लेगा हीरा टटोल  ,
नहीं कर रहा तुझसे मैं मोल तोल ,
गले में पडा जो बजा वह न ढोल ,
फकीरों से तुझ को मिलेगा भी क्या ,
उन्हें तो है खाने का लाला पडा .
             ( ३१ ) 
 तुझे माल व जर से मैं आ तौल दूँ ,
तेरा चाँद जैसा मैं मुंह चूम लूँ ,
मैं उन छोकरों के भगा कर हटूं ,
सजा मैं उन्हें  खूब देकर  लठुं ,
मैं आया हूँ लेका यही एक आस ,
तू कर ठंडी अब मेरे दिल की भड़ास .
             ( ३२ ) 
ये सुनते ही सीता को तैश आ गया ,
कहा अरे हैं मेरे अब पीया ,
अगर खैर है चाहता भाग जा ,
ये मनहूस सूरत न अपनी दिखा ,
शराफत का दावा करे तू तो क्यों ,
ये ताकत का दम भी भरे तू तो क्यों .

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