बुधवार, 1 सितंबर 2010

३६ -रामायण .

                          (७५ )
ज्यों ही आये अवध के जाने वां था अजीब हाल ही हो रहा ,
था गली गली में सबूत ही की था चप्पा चप्पा ही रो रहा ,
वहां हर दूकान ही बंद थी की शहर था खुद ही में खो रहा ,
वहां दिन में रात का था गुमान की था सारा आलम सो रहा ,
थी अजीब -अजीब सी कैफियत की था सारा हाल बड़ा गया ,
वहां मौत सस्ती थी जाने मन की था भाव जीस्त का चढ़ रहा .
                           ( ७६ )
कहा भरत लाल ने मां से ये - हैं कहाँ पिटा,कहाँ राम जी  ?
कहाँ लक्ष्मण ?मुझे दो बता कहाँ जानकी सी है मां गईं ?
नहीं कुछ सुनाई है दे रहा ये दशा अयोध्या की क्यों हुई ?
की चारों ओर ही खामोशी की नगर की धूम कहाँ गई ,
की काला दाल में कुछ न कुछ नहीं आज रक्स व सरूर है  .
नहीं सगुन किसी काम के मेरी जान बात जरूर है .
                          ( ७७ ) 
ये सूना तो कैकेई ने कहा ज़रा बात सुन मेरी गौर से ,
तुझे फिकर और की क्या पड़ी ज़रा अपना हाल भी देखले ,
तुझे राज पाट भी मिल गया किया मैंने ये तेरे वास्ते ,
हुआ फिकर तेरा भी अब नहीं मुझे और कुछ नहीं चाहिए ,
गए वन को राम और जानकी गया उनके साथ ही लक्ष्मण ,
उन्हें साल चौदह का हुकुम है तभी हो गया उनका भी गमन .
                           ( ७८ )
की बजा तू चैन की बांसुरी की दे मंथरा ही को तू दुआ ,
ये उसी के दम का तो फैज है की हुआ है साफ़ ही रास्ता ,
तुझे क्या मलाल है अब बता मेरे लाल गम न तू कोई खा ,
ले तू तख़्त ताज संभाल अब मेरे हाल पर भी तू कर दया ,
अरे हाँ पिताजी तो चल बसे मुझे इसका पुत्र है दुःख बहुत ,
भला रोने धोने से फायदा तेरे पास न जानी है सुख बहुत

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