शनिवार, 11 सितंबर 2010

रामायण -62

              ( २५ ) 
आ गई सुग्रीव के उजड़े चमन में फिर बहार ,
भूल बैठे वह किये जो राम से कॉल व करार ,
छा गया सुग्रीव के दिल पे भी शरबत का खुमार ,
ला रही थी रंग अब तो गर्दिशे लील व निहार ,
एक अरसे तक न ली आखिर किसी ने कुछ खबर ,
आ गया बरसात का मौसम लिती शाम व सहर .
                ( २६ ) 
दिल के लुटने का उन्हें होने लगा अहसास फिर ,
यों हुआ महसूस मेरी जान हो मेरे पास फिर ,
वस्ल की इक इक घड़ी आ जाए मुझको रास फिर ,
रेशमी जुल्फों के साए की मैं पाऊं वास फिर ,
खौफ से वह काँप उठे देखी बिजली की चमक ,
मेरे पहलू गिरे वह  सुन के बादल की कड़क .
                 ( २७ ) 
कूक कोयल की सुनूं तोदिल मचलता है मेरा ,
बोलता है जब पपीहा मन है सबका नाचता ,
नाचता है मोर जब घनघोर बादल देखता ,
अपने दिल को क्या मैं कहकर हाय समझाऊं भला ,
दिल की विपदा के हाथों आज मैं मजबूर हूँ ,
दिल के हूँ नजदीक लेकिन आँख से हो दूर हूँ .
                 ( २८ ) 
जाओ लक्ष्मण आज तुम सुग्रीव से जाकर कहो ,
आप की खातिर किया  जो कुछ वह खुद ही देख लो ,
आप मेरे करता धरता आप मेरे दुःख हरो ,
आप अपना अब तो वादा जाने मन पूरा करो ,
राम का ये हुकुम सुनकर चल पड़े लक्ष्मण तभी ,
हुकुम की तामील करने आये किष्किन्धा पुरी .

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