मंगलवार, 7 सितंबर 2010

45- रामायण .

                (५ )
अजब तारुफ़ गई खिल कली ,
सभी राम से बात जा उस ने की ,
कभी जा के वह जानकी से लड़ी ,
कभी लक्ष्मण से वह जाकर भिड़ी ,
मानो उसने शादी की दरख्वास्त की ,
की दोनों को दावत मुहब्बत की  दी .
                  ( ६ ) 
कहा राम ने हो चुका ब्याह ,
नहीं है मेरे दिल में अब और चाह ,
तू  जाकर कोई दूसरा सोच राह ,
न होगा तेरा और मेरा निवाह ,
गई फिर तो वह लक्ष्मण जी के पास ,
की शायद हो पूरा मेरे मन की आस .
                ( ७ ) 
कहा लक्ष्मण ने गहन बख्श दे ,
करे तू कोई और कोई भर दे ,
कोई पाप नाहक ही क्यों सर पे ले ,
है बेहतर तू मुझ पर रहम ही कर दे ,
तुझे वास्ता पंज्तन पाक का ,
हूँ मैं बाल ही राम की नाक का .
                ( ८ ) 
कहा उसने जितना निडर हो गई ,
की शर्म व हया पी के वह सो गई ,
हया उसकी दुनिया ही से खो गई ,
वह हवस व हरस ही में गम हो गई ,
वाला खुद हुए तंग लक्ष्मण जित्ती ,
की बेगैरती की सजा यों मिली 

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