शनिवार, 11 सितंबर 2010

६०-रामायण

                    (१७)
दास्ताँ सुन कर हुआ दिल राम का बेहद अधीर ,
बोले दिलवाउंगा हक़ मैं लाज्मन ए हक़ सफीर ,
मेरे हाथों हर जफा जू होता आया है असीर ,
पाप की नैया डूबने को है काफी एक तीर ,
कॉल दो मुझको की मेरा साथ दोगे तुम सदा ,
ये सूना तो कर लिया इकरार सब ने बरमुला .
                   ( १८ ) 
दी परीक्षा राम ने सब वानरों के सामने ,
पूरे उतरे वह परीक्षा में की सब ही साद थे ,
राम ने सुग्रीव को भेजा   लड़ाई के लिए ,
राम ने देखा की थे दोनों ही भाई एक से ,
हो गए वह आनाकानी ही में आखिर मुब्तला ,
जंग के मैदान से सुग्रीव आखिर आ गया .
                    ( १९ ) 
डाल गरमाला गले में चल पड़े सुग्रीव जी ,
आखिर से फिर से लड़ाई भाइयों की हो गई ,
सात पेड़ों से गुजरता आ गया इक तीर भी ,
हो गया बेहोश बाली खिल गई दिल की कली ,
होश आया तो वह बोला वार ओछा कर दिया ,
मरद मैंदा तुम नहीं हो तुम तो करते रिया .
                  ( २० ) 
भाई का हक़ छीन लेना तो रियाकारी नहीं ,
राज सारा खोंस लेना भी तो मक्कारी नहीं ,
माल दौलत लूट मेला भी तो अय्यारी नहीं ,
भाई की बीवी को रख लेना जिनाकारी नहीं ,
हक़ परस्ती का सबक मुझको पढाओ किस तरह ,
मेरे आगे भी तू मक्कारी की तुम कर दो तरह 

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