रविवार, 12 सितंबर 2010

६६-रामायण

                ( ९ ) 
जब सूनी बात रावण को तैश आ गया ,
तन बदन बेर की तरह ढर्रा गया ,
उसका चेहरा तो गेज बा गजब ढा गया ,
खून आँखों ही में उसकी तो छा गया ,
यों कहा तेरी बुद्धी गई है किधर ,
नाचती है कजा सर गया तेरा फिर .
                  ( १० ) 
जो बुलाये कजा को वह नादाँ है ,
तेरी जिद और हट तेरा ईमान है ,
तू हकीकत से अपनी अब अनजान है ,
दो महीने की अब तू तो मेहमान है ,
हक़ तो ये है की दिन मौत के आ गए ,
अपना अंजाम तू देख ले सोच के ,
                 ( ११ ) 
ये कहा और रावण तो रुखसत हुआ ,
खुदकुशी का इरादा तभी कर लिया ,
अये जीना ही अब तो गजब हो गया ,
हाय अब मौत ही मुझको अये खुदा ,
और फंदा गले में लगाया ज्यों ही ,
इक अंगूठी जमीन पर मानों जा गिरी .
                 ( १२ ) 
ये शरारत हुई थी हनुमान से ,
ताकि सीता किसी तरह से बच सके ,
फिर लगाया था अंगूठी को सीने से ,
और हजारों की फिर इसने बोसे लिए ,
चमका चेहरा मानों खिल गया उसका दिल ,
आज बिछुड़ा हुआ पी गया उसको मिल .

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