बुधवार, 8 सितंबर 2010

५४-रामायण

      ( ४१ ) 
कहा राम ने तू कहाँ है सीता ,
तेरे बिन नहीं लगता मेरा जीता ,
फलक तूने उसको तो खा ही लिया ,
जमीं तूने निगला है उसको बता ,
कहो कुमारियों जानकी है कहाँ ,
तुम्हारे मुंह में रही अब जुबां .
             ( ४२ ) 
तू पी पी पपीहा यों नाहक न बोल ,
है क्या तेरे दिल में जुबां कुछ तो खोल ,
करो फूल पत्तों न तुम दिल का मोल ,
तुम्हारी हंसी में पड़ें दिल में झोल ,
अरे बादलो तुम कहो कुछ तो हाल ,
हवाओं तुम्हीं ने किया है कमाल .
               ( ४३ ) 
मेरी रूह मुझसे तो छूट ही गई ,
की दौलत मेरी दिन दहाड़े लुटी ,
न आई मुझे रास कोई खुशी ,
मेरी मौत ही है मेरी जिन्दगी ,
ये हक़ है के हूँ बे काशी का मजार ,
मेरे गुलस्तों  है रुखसत बहार .
              ( ४४ ) 
ये कहते थे और रोते जाते थे राम ,
लखन ने कहा सबर का पिउं जाम ,
ये रोने का अब तो नहीं है मुकाम ,
न चिल्ला के बनता जमाने में काम ,
चलो जाके खोजेंगे सीता को हम ,
कहा इस तरह और बढायें    कदम .

                 

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