कहा राम ने तू कहाँ है सीता ,
तेरे बिन नहीं लगता मेरा जीता ,
फलक तूने उसको तो खा ही लिया ,
जमीं तूने निगला है उसको बता ,
कहो कुमारियों जानकी है कहाँ ,
तुम्हारे मुंह में रही अब जुबां .
( ४२ )
तू पी पी पपीहा यों नाहक न बोल ,
है क्या तेरे दिल में जुबां कुछ तो खोल ,
करो फूल पत्तों न तुम दिल का मोल ,
तुम्हारी हंसी में पड़ें दिल में झोल ,
अरे बादलो तुम कहो कुछ तो हाल ,
हवाओं तुम्हीं ने किया है कमाल .
( ४३ )
मेरी रूह मुझसे तो छूट ही गई ,
की दौलत मेरी दिन दहाड़े लुटी ,
न आई मुझे रास कोई खुशी ,
मेरी मौत ही है मेरी जिन्दगी ,
ये हक़ है के हूँ बे काशी का मजार ,
मेरे गुलस्तों है रुखसत बहार .
( ४४ )
ये कहते थे और रोते जाते थे राम ,
लखन ने कहा सबर का पिउं जाम ,
ये रोने का अब तो नहीं है मुकाम ,
न चिल्ला के बनता जमाने में काम ,
चलो जाके खोजेंगे सीता को हम ,
कहा इस तरह और बढायें कदम .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें