मंगलवार, 7 सितंबर 2010

४7-रामायण

               (१३ ) 
यही बात दिल पर असर कर गई ,
मुहब्बत की सोई कली खिल गई ,
हुई बेकरारी बढ़ी बेकली ,
सिया को चुराने की तदवीर की ,
किया मश्वारह जाके मारीच से ,
की उम्मीद तो कोई आखिर बंधे .
               ( १४ ) 
हुई जब की मारीच से गुफ्तगू ,
छूते हाथ से उसके जाम व साबू ,
नजर आया मंजर उसे हूँ बहू ,
हुया खुश्क उसकी रंगों  से लहू ,
उड़े होश उसके गई जान निकल ,
हुए हाथ पाँव मानों उसके सिल .
               ( १५ ) 
कहा तू मेरे हाल पर रहम कर ,
न कर जीस्त से मुझको तू बेखबर ,
तेरी गुफ्तगू में नहीं है असर ,
तुझे क्या मिलेगा मुझे मार कर ,
सूना फिर तो लंकेश ने यों कहा ,
तू पागल है नादाँ है मर बेहया .
               ( १६ ) 
अगर मर गया तो मिलेगी निजात ,
जो ज़िंदा रहा ढायगी है हयात ,
की दोनों तरफ ही से बाजी है मात ,
तेरी बेहतरी की मैं करता हूँ बात ,
मेरा काम अगर तू करेगा नदीम ,
तू पाए दौलत तू मुझसे अजीम .

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