शनिवार, 11 सितंबर 2010

६३-रामायण

                  ( २९ ) 
बात सुनकर लक्ष्मण की हो गए सुग्रीव उदास ,
आदमी वह क्या जो बिलकुल कॉल से हो न सनास ,
यों कहा सुग्रीव ने और आ गए रघुवर के पास ,
सब खताएं बख्शिए हूँ आपका भगवन मैं दास ,
इतना कहते ही रवाना कर दिया हनुमान को ,
दी अंगूठी राम ने कुछ तो निशानी पास हो .
                   ( ३० ) 
फिर समुन्दर के किनारे आ गए हनुमान जी ,
सारी वानर फ़ौज उनके पास थी हमराह थी ,
सोचते थे सरे समुन्दर की हो कैसे बेरुखी ,
काम कुछ आती नहीं याद बंदगी और आजिजी ,
आ गए इतने में सम्पाती सुनो सब वारदात ,
एक चुटकी में बता दी राज की हर इक बात .
                   ( ३१ ) 
नाम ले कर राम का हनुमान ने मारी छलांग ,
सच तो ये है थी निहायत सख्त और कारी छलांग ,
दर हकीकत सारी लंका पर थी ये भारी छलांग ,
उस दयालु के करम से मैंने भी मारी छलांग ,
मेरे दाता तेरी रहमत से हुई मंजिल तमाम ,
पी रहा हूँ तेरे बल पर आज मैं वहदत के जाम .

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