रविवार, 12 सितंबर 2010

६५-रामायण

            ( ५ ) 
आया लंका पति झूमता झामता ,
अपनी अलवार को चूमता चांटा ,
बोला सीता बता क्या इरादा तेरा ,
तेरी फुरकत में जीउँ मैं कब तक भला ,
अब तो जाने जिगर तू न कुछ देर कर ,
अब तो ए जाने मन दिल ले ले खबर .
             ( ६ ) 
तुझ पे कुर्बान है तख़्त और ताज ये ,
माल व जर है तेरा है तेरा राज ये ,
मेरी बन इश्क का पूरा कर काज ये ,
रख ले अब तू मुहब्बत की लाज ये ,
तुझको रानी बना के ही रखूंगा मैं ,
माल व जर तो है क्या खून भी दे दूंगा मैं .
            ( ७ ) 
जब सूनी बात ये जानकी ने कहा ,
मुंह को फ़ौरन तू कर बंद ए बेहया ,
तेरी औकात क्या है भला ये बता ,
तुझ से टुकडा न हक़ बांस  का भी ,
इश्क और मुझसे ? तू क्या करेगा भला ,
देख आयने में अपनी सूरत ज़रा .
           ( ८ ) 
जोर था तो समुन्दर से लाता मुझे ,
अपने कस बल तू क्यों है दिखाता मुझे ,
नाम रघुवर का है अब तो आता मुझे ,
अब तो नाहक तू है आजमाता मुझे ,
मेरे रघुवर ही के बस का तू रोग है ,
उनके ही हाथ में तेरा संजोग है .

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