गुरुवार, 2 सितंबर 2010

३९ -रामायण

                                     ( ८७ ) 
ज्यों ही ये खबर गई शहर में हुए वासी भी तैयार फिर ,
वह तो दिल में ये ही थे सोचते न हुआ राम दरस में यार फिर ,
उन्हें दीद ही की तो आस थी की न याक्बत में हो बार फिर ,
की है जिस्म अपना मलीन ही न तो दिल में कोई गुबार फिर ,
गए भरत लाल के पास सब कहा साथ हम भी तो जायेंगे ,
हमें दीद ही की तो आस है हम प्यास दिल की बुझाएंगे .
                                     ( ८८ ) 
मिला भरत लाल से हुक्म फिर चले सब अवधपुर छोड़कर ,
मिला चौकीदारों का आसरा वाही लेंगे दुःख सुख की सब खबर ,
उन्हें दीद ही के तो आस थी हुआ दिल दुखों से न बेअसर ,
वह थे खारजारों  से  बेखबर की थे दीद ही के वह मुंतजर ,
की थे बूढ़े बच्चे जवान सब थे कारवाँ ही में चल रहे ,
वह उमंग थी वह तरंग थी की नए ही सांचे में ढल रहे .
                                       ( ८९ ) 
वहां सब से आगे भरत चरत की थे नंगे पाँव जो चल रहे ,
की थे हाथी ऊँट बे इन्तहा  घोड़े रथ भी अनेक थे ,
की था सारा शहर ही चल पडा की थे गाँव वाले भी चल पड़े ,
कहा भील राज ने  देखकर ये तो हमला करने को आ रहे ,
हुए एकदम तैयार फिर हुई फ़ौज फ़ौरन ही बा खबर ,
मगर आये भरत जो सामने लगा अपने आपसे उनको डर.
                                      ( ९० ) 
कही भरत लाल ने बात सब मन की अश्क आँखों में आ गए ,
कहा राम मेरा असास है वाही जिन्दगी पे हैं छा गए ,
ये उन्हीं का दिल था की जाने मन की वह जख्म सीने पे खा गए ,
वाही याक्बत का है रास्ता वाही मेरे दिल को है भा गए ,
उन्हें हुकुम  वालिद अजीज था की वह आन ही पर थे मर मिटे ,
मुझे नाज उनकी है जात पर की जो उन ही पर थे कट गए .

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