रविवार, 12 सितंबर 2010

६७-रामायण

          ( १३ )
कूद कर पेड़ से नीचे आ ही गए ,
जानकी जी के वह पाँव में गिर पड़े ,
उनके दिल में तो पहले सकूक अये थे ,
एक चुटकी में सब दूर हो ही गए ,
फूल फल बाग़ के वह उजाड़ने लगे ,
इक धमा चौकड़ी सी मचाने लगे .
               ( १४ ) 
बागवान की न पेश उनके आगे गई ,
उसने दरबार में जाके फ़रियाद की ,
और रावण कुछ फ़ौज बेटों के दी ,
वह भी सारी वहां ढेर ही हो गई ,
जाके दरबार में कुछ खबर ले गए ,
अब तो अक्षय भी धोखे हमें दे गए .
               ( १५ ) 
ये सुना और रावण उबलने लगा ,
वह कुफैदस्त अपनी मसलने लगा ,
और गुस्से में आकर बहकने लगा ,
मोर्चा खुद वह सर करने चलने लगा ,
जब सूना यकबयक इन्द्रजीत  आ गया ,
लेके वह हुकुम गुलशन की जानिब चला ,
             ( १६ ) 
उसको मालूम था ये हनुमान है ,
सख्त है जान और पुख्ता ईमान है ,
फांसना इसको कहने में आसान है ,
मोर्चा सर न करने ही में शान है ,
आखिर से अये काबू में हनुमान जी ,
जिसने देखा उसी को थी आई हंसी .

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