मंगलवार, 14 सितंबर 2010

७२-रामायण

  विजय दशमी          
                  (१ )
गई खबर हर तरफ की राम चन्द्र आ गए ,
वह पिन्हा  का अलम लिए हैं पाप पर ही छा गए ,
वह बहरोवर से पार होके लंका ही में आ गए ,
बड़ी का सर कुचलने को वह सबका गम ही खा गए ,
हरम सरा में खबर चली गई थी एकदम ,
तो मुंह खुले ही रह गए की गिर गया हो जैसे बम .
               ( २ ) 
सूनी ये बात रुक गई की एकदम मंदोदरी 
की रंग जर्द हो गया महल में वह चली गई ,
महल में थे कनकेश वां ये गुफ्तगू शुरू हुई ,
मेरे सुहाग आप हो है आप ही से जिन्दगी ,
ये पाप करना छोड़ दो ये पाप का है रास्ता ,
की दे दो जानकी उन्हें प्यार   का है वास्ता .
              ( ३ ) 
ये राम चन्द्र सच कहो रहीम करीम हैं ,
गुनाह वक्ष देंगे सब ये हक़ है वह रहीम हैं ,
मगर बुरों के वासे बड़े कड़े गनीम हैं ,
न ये समझ ही बैठना की फकत तसीम हैं ,
नहीं नहीफ हैं फकत ये दिल में अपने ठान लो ,
नहीं नहीं बला हैं वह ये कहना मेरा मान लो .
               ( ४ ) 
सूना तो ये कहा की -तेरी जिन्दगी है तुफ्र ,
न बुजदिलों की बा तकर की इस कहानी पे है तुफ्र ,
न बढ़ के बात तू बना की तुझ सी रानी पे है तुफ्र ,
मैं बादशाहों का हूँ शाह की दिल की ठानी पे है तुफ्र ,
जो नाज और घमंड है वह है किसी ही बात पर ,
की फ़ख्र   मुझको खुद पे है है नाज अपनी जात पर .
  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें