( १७ )
नगर नगर ढिंढोरा पीटा गाँव गाँव ऐलान हुआ ,
कूचे कूचे गली गली में भी शाही फरमान गया ,
अवधपुरी के हर कोने में खुशियों का तूफ़ान उठा ,
मरने वालों को भी आखिर जीने का अरमान हुआ ,
राम चन्द्र जी के आने की घर घर में थी धून मची ,
सीता जी और लखन लाल के दर्शन की थी आस लगी .
( १८ )
आज खुशी से आच रहे थे अवधपुरी के नर नारी ,
बच्चा बच्चा कहता था ये खिल गई सुख की फुलवारी ,
महलों के सब दास और दासी थे अपने पर बलिहारी ,
पंडित और नजूमी बोले शुभ दिन है मंगल कारी ,
भरत लाल ने सभा बुलाई राज्य के ओहदेदारों की ,
बंदोबस्त हो ताकि पूरा पछताने की हो न घड़ी .
( १९ )
रही न कोई बात अधूरी शाही हुकुम हुआ सब पूरा ,
सड़कें साफ़ हुईं थीं निकला गलियों का सब कूढा ,
अवधपुरी के हर वासी ने अपने घर को लीपा पोता ,
सजी सजाई देख दुकानें बच्चा बच्चा झूम रहा था ,
राम लखन की आमद क्या थी सारी नगरी बन गई दुल्हन ,
अवधपुरी बनी सुहागिन नाच उठा धरती का कण कण .
( २० )
सुबह सवेरे ही नर नारी महल के चारों ओर खड़े थे ,
सबकी नजरें थीं आकाश पे जितने छोटे और बड़े थे ,
हर चेहरे पे बेताबी थी पाँव जमीं पर आज गड़े थे ,
दिल की धड़कन तेज हुई थी प्राण हर इक के लब पे अड़े थे ,
पुष्प विमान जो देखा अचानक सब के चेहरे चेहरे खिल उठे थे ,
उछल उछल के कूद कूद कर जै जै कार लगाईं सबने .
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