गुरुवार, 16 सितंबर 2010

८८-रामायण

              ( ९ )
राम  को तुम से मोह अधिक है उनसे बिगड़े काज  बनें ,
उनसे तख़्त व ताज है कायम उनसे उजड़े राज बसें ,
देख रहा हूँ करनी उनकी उनसे धारे सुख के हैं ,
सब हैं उनके प्यार के भूखे कौन है भूखे रह जो सकें ,
मैं हूँ राम का तुच्छ सेवक हनुमान सब कहते हैं ,
यही संदेशा लाया हूँ मैं राम अवधपुर आये हैं .
              ( १० ) 
राम के बल से बसे अयोध्या सीता बिन रनिवास नहीं ,
महल मीनारें सूने सूने लखन जी पास नहीं ,
किसके सहारे भला जियें हम जीने की अब आस नहीं ,
राम चन्द्र जी हुए हैं निष्ठुर उनको तो अहसास नहीं ,
भरत लाल जी रोकर बोले आँखों में था नीर बहा ,
हनुमान ने गले लगाकर आखिर ये सन्देश कहा .
              ( ११ ) 
दुःख के बादल छंट गए भैया आ गई है सुख की राशि ,
आज तलक थी घोर अमावस कल हो गई पूरण मासी ,
मन में धीरज रखो भैया रायेंगे दुःख से नाशी ,
रघुराई आते ही होंगे अवध बनेगी अब काशी ,
चौदह साल हुए हैं पूरे आज अवध के भाग जगे ,
सुख की बरखा होगी अब तो दुःख के बंधन आज कटे .
               ( १२ ) 
वनवासी अब नहीं राम जी वह तो राज दुलारे हैं ,
आदि से लेकर अंत तलक वह सब की आँख के तारे हैं ,
चौदह बरस समाप्त हुए प्रयाग में आन पधारे हैं ,
इक दिन अधिक लगायेंगे वह यज्ञ के बहुत प्यारे हैं ,
इसी तरह से हनुमान ने सारी लीला कह डाली ,
भरत लाल ने सुनी प्रेम से राम की लीला मतवाली .

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