बुधवार, 8 सितंबर 2010

५५-रामायण

   ( ४५ ) 
वह पहुंचे जहां थे जटाऊ निढाल ,
जख्मों से उनका बड़ा मुन्दह हाल ,
नजर आ रहा था उन्हें नहीं अब माल ,
सफ़र आख़िरी था न थी कील व फाल ,
लिटाया उन्है९न गोद में राम ने ,
उन्हों ने सभी जख्म फिर धो दिए .
      ( ४६ ) 
जटाऊ ने सारी सुनाई खता ,
उन्होने मुसलसल सभी कुछ कहा ,
सभी राम कहने की आई सदा ,
की फिर तो दूर रूह उड़ ही गया ,
किये राम ने फिर सभी संस्कार ,
बढ़ा मर्तबा थे वह आली विकार .
        ( ४७ ) 
उन्हें चलते चलते मिली भीलनी ,
की थी बेर वह तो सदा बेचती ,
उसे राम की आस मुद्दत से थी ,
तभी उसके दिल की कली खिल गई ,
खिलाये बढे प्रेम से उसने बेर ,
मुहब्बत के जग में हुई थी सवेर .
          ( ४८ ) 
तभी से है रात और तभी से सवेर ,
तेरे घर में मालिक नहीं कोई देर ,
तेरे घर में होती नहीं तेर मेर ,
तू सबका है दाता है सब तेरे जेर ,
किया फैज तूने हुआ यह कमाल ,
बिना खजर रह पर दिया मुझको ड़ाल.

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