मंगलवार, 7 सितंबर 2010

४4- रामायण

                       सीताहरण  
                        ( 1 )
                                      

गए छोड़ तीनों ही फिर चित्रकूट ,
वहां की है महिमा निहायत अटूट ,
पड़ी राम भक्ति की वां खूब लूट ,
अकीदत वहां की नहीं झूठ मूट ,
वहां से वह आये थे फिर पंचवटी ,
वहां उम्र थी पाप की घट गई .
              ( २ ) 
वहां आई रावण की इक दिन बहिन ,
की सूरत से उसकी लगा था गहन ,
थी काली कलूटी नहीं यम तन ,
थी सीरत भी वैसी था वैसा बदन ,
मुहब्बत की दुनिया से वह दूर थी ,
हवस के रिनसे में वह मखमूर थी .
            (३ ) 
उसे लोग कहते थे सब सूर्पनखा ,
यही नाम दुनिया में मशहूर था ,
की दिल में था उसके फरेब और रिया ,
थी कोसों ही दूर उससे शर्म व हया ,
किया उसने आते ही खुद यों सवाल ,
कहा जाने मन कुछ कहो हाल चाल .
            ( ४ ) 
कहो कौन हो और किस के हो पूत ,
रमाई है क्यों इस तरह से भभूत ,
ये है छोकरी कौन किसकी है जीत ,
न आई तुम्हें दूसरी कोई सौत ,
बहिन हूँ मैं रावण की हूँ सूर्पनखा ,
जहां तुम हो वह है इलाका मेरा .

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