गुरुवार, 16 सितंबर 2010

८५-रामायण

               ( ५३ ) 
की आरजी है जिन्दगी गर वर की न बात कर ,
की बंदगी में नूर है तू इकसार ही से  डर ,
मुझे डुबोया जिद ही ने फिजूल की तू जिद न कर ,
तू प्यार ही से रह सदा की इश्क सब का राह्वर ,
ये बात ख़त्म हो गई तो काल आ गया तभी            
 ये काम की सुनी तो  लक्ष्मण ने राह ली .
                ( ५४ ) 
तभी सिया भी आ गई हुई तभी परीक्षा ,
परीक्षा सफल फुई कबूल राम ने किया ,
विभीषण आदि सब ने दाह संस्कार कर दिया ,
विभीषण आये सामने तो हुक्म राम का मिला ,
तुम्हें राज सौंपता की याक्बत का डर तुम्हें ,
तुम्हें खुदा का खौफ है नहीं है कुछ खतर तुम्हें .
                ( ५५ ) 
तेरे फी फैज से मिली थी लक्ष्मण की जिन्दगी ,
तेरे ही बल से राम को फतह नसीब हुई ,
सिया को राम मिल गए की हक़ ने पाई थी खुशी ,
विभीषण आये सामने तो जिन्दगी भी उसको दी ,
रहीम तू करीम तू तेरा  है फैज सर बसर ,
क्या करम है मुझ पे भी की आ गया हूँ राह पर 

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