मंगलवार, 14 सितंबर 2010

७९-रामायण

                  ( २९ ) 
सुनी खबर ज्यों ही वह कुम्भकरण के यहाँ चला गया ,
वह छः महीने जागता था छः महीने सोता था ,
वह उस समय भी चैन की थी बांसुरी बजा रहा ,
बड़े ही चैन सुख से था वह गहरी नींद सो रहा ,
दिलों के भेद छुप गए दिलों के दाग छुप गए ,
वह सो रहा था नींद में यहाँ थे ढोल बज रहे .
                 ( ३० ) 
उठा तभी वह चौंक कर की जाने मन है बात क्या ,
मैं नींद में था सो रहा मुझे जगाया क्यों भला ,
है क्या मुसीबत आ पडी पहाड़ क्या है गिर पडा ,
है बात क्या मुझे भी तो बताओ आज तुम ज़रा ,
कजा है किसकी आ गई की मौत खींच लाइ है ,
मैं उठूँ तो कहेंगे सब दुहाई है दुहाई है 
                   ( 31 ) 
ज्यों ही हुई ये गुफ्तगू वह एक दम ही यथ पडा ,
वह क्या उठा की एक दम ही जलजला सा आ गा ,
जमीं भी काँप काँप उठी फलक भी थरथरा  गया ,
हवा के रुख बदल गए ज्यों ही वह वीर उठ पडा ,
किया ज्यों ही मुकाबला वह वीर ढेर हो गया ,
की कुम्भकरण तो एक पल में ख़ाक ही मैं मिल गया .
                   ( ३२ ) 
गई खबर मौत की तो सोग छा  गया मन ,
की गम का राज हो गया की गम ही था गया मन ,
करा सबका लुट गया वह जुल्म ढा गया मन ,
सुनी खबर लंकेश ने तो गश ही था खा गया मन ,
हुए हरेक शख्स  के तभी हवास बाखता ,
सुना चचा हैं मर गए तो मेघनाथ आ गया .

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