रविवार, 12 सितंबर 2010

६८-रामायण

              ( १७ ) 
देखकर उनको बच्चे उछालते रहे ,
वासी लंका के उन ही पे हँसते रहे ,
देखने उनको छज्जों पे आते रहे ,
सब खुशी में ही हँसते हंसाते रहे ,
आखिर से अये हनुमान दरबार में ,
बोला लंकेश इस को बता ही तो दें .
                ( १८ ) 
किसलिए तूने गुलशन उजाड़ा बता ,
हमने तेरा भला है बिगाड़ा ही क्या ,
किसलिए तूने बेटे को मारा भला ,
हाथ यों हाकिमों पे है उठ्ठा तेरा ,
कौन है तू बता क्या तेरा नाम है ,
तेरे आने का लंका में क्या काम है .
                 ( १९ ) 
फूल फल ही तो खाए तेरे बाग़ के ,
तेरे नौकर मुझे अये थे मारने ,
तेरे बेटे के तेवर बिगड़ने लगे ,
सब ही खुद फिर तो लड़ लड़के मरते रहे ,
क्या करूँ ये जवानी ही का जोश है ,
तू बता इसमें मेरा ही क्या दोष है .
               ( २० ) 
नाम हनुमान मेरा है ए जाने मन ,
धाम किष्किन्धा पुर और यही है वतन ,
दास हूँ राम का राम मेरा है धन ,
माता सीता को है खोजने की लगन ,
एलची बन के आया हूँ लंका में मैं ,
कर दे वापिस लिया सब ही सुख से रहें .

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