गुरुवार, 16 सितंबर 2010

८९-रामायण

                ( १३ )
 भरत लाल की प्यासी आँख से नीर खुशी के बहते थे ,
 सुनकर राम का सुभ संदेशा पाँव जमीं पे न पड़ते थे ,
बेचैनी के बंधन टूटे फिर रीते के रीते थे ,
उनके मन की वह ही जाने कैसे पल छिन  बीते थे ,
 राम की आमद का संदेशा महलों में भी जा पहुंचा ,
अवधपुरी का बच्चा बच्चा सुख सागर में डूब गया .
                  ( १४ ) 
महलों में भी शत्रुघ्न के पास संदेशा पहुंचाया ,
वह भी सुनकर बोले - भगवन संवर गई मेरी काया ,
सेवा करने का तो मौक़ा अब ही सुनहरी है आया ,
मेरा तन मन तुम्हारे अर्पण तुम्हारी है सगरी माया ,
मुझं पापी को पार लगाने तुम ही तो अब आओगे ,
मेरे सोये भाग जागेंगे नरक को स्वर्ग बनाओगे .
                  ( १५ ) 
तुम ही मेरे बन्धु भ्राता तुम ही बापू मैया हो ,
जीवन नैया टूटी फूटी  केवल तुम्हीं खिवैया हो ,
तुम धन मेरे तुम ही डाकू तुम ही इसके रखिया हो ,
घाट घाट के हो तुम ही वासी तुम ही राम रमिया हो ,
खुद ही खुद से कहते जाते थे और खुद ही हँसते जाते थे ,
सच पूछो तो शत्रुघ्न जी फूले नहीं समाते थे .
                   ( १६ ) 
कौशल्या की बूढ़ी आँख तो दावाजे को ताकती थी ,
और सुमित्रा अपने आपको ये कहकर थी समझाती ,
पीठ जो उनकी देखी थी तो मुख भी उनका देखूंगी ,
शाही हरम सरा में आखिर ये खुश खबरी जा पहुँची ,
अश्क खुशी के कौशल्या की आँख से छम छम  बहते थे ,
कैकेई के  भी पाँव जमीं पे आज न बिलकुल टिकते थे .
                ( १३ )
 भरत लाल की प्यासी आँख से नीर खुशी के बहते थे ,
 सुनकर राम का सुभ संदेशा पाँव जमीं पे न पड़ते थे ,
बेचैनी के बंधन टूटे फिर रीते के रीते थे ,
उनके मन की वह ही जाने कैसे पल छिन  बीते थे ,
 राम की आमद का संदेशा महलों में भी जा पहुंचा ,
अवधपुरी का बच्चा बच्चा सुख सागर में डूब गया .
                  ( १४ ) 
महलों में भी शत्रुघ्न के पास संदेशा पहुंचाया ,
वह भी सुनकर बोले - भगवन संवर गई मेरी काया ,
सेवा करने का तो मौक़ा अब ही सुनहरी है आया ,
मेरा तन मन तुम्हारे अर्पण तुम्हारी है सगरी माया ,
मुझं पापी को पार लगाने तुम ही तो अब आओगे ,
मेरे सोये भाग जागेंगे नरक को स्वर्ग बनाओगे .
                  ( १५ ) 
तुम ही मेरे बन्धु भ्राता तुम ही बापू मैया हो ,
जीवन नैया टूटी फूटी  केवल तुम्हीं खिवैया हो ,
तुम धन मेरे तुम ही डाकू तुम ही इसके रखिया हो ,
घाट घाट के हो तुम ही वासी तुम ही राम रमिया हो ,
खुद ही खुद से कहते जाते थे और खुद ही हँसते जाते थे ,
सच पूछो तो शत्रुघ्न जी फूले नहीं समाते थे .
                   ( १६ ) 
कौशल्या की बूढ़ी आँख तो दावाजे को ताकती थी ,
और सुमित्रा अपने आपको ये कहकर थी समझाती ,
पीठ जो उनकी देखी थी तो मुख भी उनका देखूंगी ,
शाही हरम सरा में आखिर ये खुश खबरी जा पहुँची ,
अश्क खुशी के कौशल्या की आँख से छम छम  बहते थे ,
कैकेई के  भी पाँव जमीं पे आज न बिलकुल टिकते थे .

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