शनिवार, 11 सितंबर 2010


राम चरित्र मानस में महा कवि तुलसी दास 
जी का दलित प्रेम    महा कवि तुलसी दास जी पर अनेक  विद्वानों ने दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है 
और सबूत के तौर पर उनकी एक चौपाई
 - 'पूजिय विप्र सील गुन हीना ,सूद्र न गुन गन ज्ञान 
प्रवीना ' को प्रस्तुत करते हैं 
कहते हैं - नुक्ते के हेर फेर में खुदा जुदा हो गया .
सन्दर्भों से काट कर उपरोक्त चौपाई में महा 
कवि तुलसी दास जी प्रथम द्रष्टया दलित विरोधी
 प्रतीत होते हैं .परन्तु गहन विवेचना  करने 
पर और सन्दर्भों से जोड़ने पर तुलसी दास जी
 दोष मुक्त हो जाते हैं .
तथा कथित चौपाई श्री राम चन्द्र जी द्वारा उस
 समय कही गई है जब वह सीता जी की खोज 
करते जंगल में भटक रहे होते हैं .उन्हें राह में
 'जटाऊ 'नाम का गीध घायलावस्था में मिलता 
है ,जो उन्हें रावण की सारी करतूत विस्तार से
बताता है . वहअपनेप्राण श्री राम चन्द्र जी 
की गोद में त्याग देता है .श्री राम चन्द्र जी
 अपने हाथों से उसका दाह -संस्कार करते हैं .
'तेहि क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम '. 
 दाह -क्रिया करने के बाद श्री राम चन्द्र जी 
अनुज लक्ष्मण जी के साथ आगे जंगल में बढ़ते 
हैं तो उन्हें 'कबंध 'नामक राक्षस मिलता है जो
 दुर्वासा  ऋषि के शाप के कारण गन्धर्व योनि को 
प्राप्त हुआ था .श्री राम चन्द्र जी ने उसे माकर शाप
 मुक्त किया .इस गन्धर्व से ही राम चन्द्र जी ने
कहा था -" सुनु गन्धर्व कहहुं मैं तोही ,मोहि न सोहाई
 ब्रम्ह कुल द्रोही .
यहाँ ब्रह्म कुल द्रोही से आशय उस व्यक्ति से है जो 
ब्राह्मण कुल में तो जन्म लेता है परन्तु अपने कुल 
के विरुद्ध आचरण करता है अर्थात अपने कुल की
 मर्यादा के विरुद्ध क्रिया -कलापों में संलग्न रहता 
है .यहाँ 'ब्रह्म कुल द्रोही ' का अर्थ अन्य किसी जाती
 के व्यक्ति से नहीं है .जिस प्रकार ' देश द्रोही '
वाही व्यक्ति होता है जो अपने देश से द्रोह करता है
 अन्य कोई व्यक्ति नहीं .
      यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है की 'गन्धर्व '
 से ' ब्रह्म कुल द्रोही ' की चर्चा करना 
अचानक ही नहीं है .जटाऊ ने ब्राह्मण कुल में पैदा हुए
 रावण की करतूत श्री राम चन्द्र जी को 
बताई थी अतः यहाँ ' ब्रह्म कुल द्रोही ' से आशय रावण ही
 है . श्री राम चन्द्र जी आगे कहते 
हैं :-" मन क्रम वचन कपट तजि जो कर भूसर सेव ,
मोहि समेत विरंचि सिव बस ताकें सब देव".
       श्री राम जी कहते हैं - जो 'भूदेव ' ऐसे ब्राह्मण के
 सेवा मन क्रम वचन से कपट त्याग कर 
करता है उसे मैं ,ब्रह्मा और सिव सहित सभी देवता ताकते
 रहते हैं अर्थात उसकी किसी भी प्रकार 
से मदद नहीं करते हैं .
        ऐसा व्यक्ति या भूदेव जो शील और गुणों से हीन
 ब्राह्मण की तो पूजा करता है परन्तु 
शूद्र को ' गुन गनों' से युक्त ज्ञान में प्रवीण होने पर भी
 सम्मान नहीं देता है ,शाप से युक्त 
कठोर वचन कहे जाने योग्य दीन व्यक्ति है . ऐसा संतों ने कहा है :-
' सापत ताड़त परुष कहंता ,विप्र पूज्य अस गावहिं संता ' 
पूजिय विप्र सील गुन हीना ,सूद्र न गुन गन ज्ञान प्रवीना '
       इस प्रकार हम देखते हैं की सन्दर्भों से काट कर चौपाई
 दलित विरोधी नजर आती है .
यदि तुलसी दास जी दलित विरोधी होते तो ऐसा नहीं लिखते :-
' भगतिवंत अति नीचउ प्रानी ,मोहि प्राण प्रिय असी मम बानी '
      मुझे भक्ति युक्त नीच प्राणी भी प्राणों के सामान प्रिय हैं .यह
 मेरी घोषणा है .तुलसी दास
जी भविष्य की उद्घोषणा करते हैं की :- 
'सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं गयाना ,मेलि जनेउ लेहिं कुदाना . '
अर्थात सूद्र लोग ब्राह्मण की तरह उपदेश करेंगे तथा ब्राह्मणों 
से मिलकर ऊंचाइयों पर 
पहुंचेंगे .सूद्र ब्राह्मणों से कहेंगे की वह उनसे छोटे हैं अर्थात अपने
 को हेय मानेंगे तब 
ब्राह्मण उन्हें आँख से डांट कर कहेंगे की वह भी ब्राह्मण के
 सामान ब्रह्मको
जानने वाले हैं 
'बादहि  सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह से कछु घाटि ,
जाने ब्रह्म सो विप्रवर आँख देखावहिं डाटी.
इस प्रकार हम देखते हैं की श्री तुलसी दास जी ने दलितों
 के प्रति प्रेम -भाव ही दर्शाया है 
न की उनका विरोध या अहित किया है .शबरी के बेर श्री 
रामचंद्र जी द्वारा खाना ,निषाद 
-गुह और केवट को अपने गले लगाना कपट पूर्ण नहीं था .
इन सब का श्री राम चन्द्र जी 
ने हमेशा सम्मान ही किया है .नाव से उतरने पर केवट को
 अपनी पत्नी की अंगूठी  दे 
डाली
श्रम 
का शोषण नहीं किया .निषाद को अपने पास बिठाते हैं ;-
'सहज सनेह विवस रघुराई ,पूछी कुशल निकट बैठाई .'
आगे देखें :- 'आपु लखन पहिं बैठउ जाई ,कटि भाथी सर चाप चढ़ाई .'
 इतने नजदीक बैठाना क्या विरोध की स्थिति में संभव था ?
' बचन किरातन्ह के सुनत ,जिमि पितु बालक बैन '.
अर्थात श्री राम चन्द्र जी किरातों के वचन ऐसे सुन रहे हैं
 जैसे कोई पिटा अपने बच्चों के बचन 
सुनता है .--'स्व पाच सबर खस जमन जड़ पांवर कोल किरात .
                रामु कहत पावन परम हॉट भुवन विख्यात ' 
यानि मूर्ख ,और पामर ,चांडाल ,शबर ,खस ,यवन कोल 
और किरात भी राम का नाम लेकर 
परम पवित्र होकर त्रिभुवन में विख्यात हो जाते हैं .
इस प्रकार हम पाते हैं की राम चरित मानस में महा कवि
 तुलसी दास जी ने दलितों के प्रति 
अपना प्रेम ही प्रकट किया है .उन्हें दलित विरोधी कहना 
चाँद पर थूकने के समान है .
                यदि महा कवि तुलसी दास जी को समझना है 
तो उनकी चौपाइयों के 
समुद्र में गहरे तक गोता लगाना पडेगा तभी कीमती अर्थ
 प्राप्त हो सकते हैं वरना -
'जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन तैसी ' वाली
 बात ही चरित्रार्थ होती है .

   महा कवि तुलसी दास जी पर अनेक  विद्वानों ने दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है 
और सबूत के तौर पर उनकी एक चौपाई
 - 'पूजिय विप्र सील गुन हीना ,सूद्र न गुन गन ज्ञान 
प्रवीना ' को प्रस्तुत करते हैं 
कहते हैं - नुक्ते के हेर फेर में खुदा जुदा हो गया .
सन्दर्भों से काट कर उपरोक्त चौपाई में महा 
कवि तुलसी दास जी प्रथम द्रष्टया दलित विरोधी
 प्रतीत होते हैं .परन्तु गहन विवेचना  करने 
पर और सन्दर्भों से जोड़ने पर तुलसी दास जी
 दोष मुक्त हो जाते हैं .
तथा कथित चौपाई श्री राम चन्द्र जी द्वारा उस
 समय कही गई है जब वह सीता जी की खोज 
करते जंगल में भटक रहे होते हैं .उन्हें राह में
 'जटाऊ 'नाम का गीध घायलावस्था में मिलता 
है ,जो उन्हें रावण की सारी करतूत विस्तार से
बताता है . वहअपनेप्राण श्री राम चन्द्र जी 
की गोद में त्याग देता है .श्री राम चन्द्र जी
 अपने हाथों से उसका दाह -संस्कार करते हैं .
'तेहि क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम '. 
 दाह -क्रिया करने के बाद श्री राम चन्द्र जी 
अनुज लक्ष्मण जी के साथ आगे जंगल में बढ़ते 
हैं तो उन्हें 'कबंध 'नामक राक्षस मिलता है जो
 दुर्वासा  ऋषि के शाप के कारण गन्धर्व योनि को 
प्राप्त हुआ था .श्री राम चन्द्र जी ने उसे माकर शाप
 मुक्त किया .इस गन्धर्व से ही राम चन्द्र जी ने
कहा था -" सुनु गन्धर्व कहहुं मैं तोही ,मोहि न सोहाई
 ब्रम्ह कुल द्रोही .
यहाँ ब्रह्म कुल द्रोही से आशय उस व्यक्ति से है जो 
ब्राह्मण कुल में तो जन्म लेता है परन्तु अपने कुल 
के विरुद्ध आचरण करता है अर्थात अपने कुल की
 मर्यादा के विरुद्ध क्रिया -कलापों में संलग्न रहता 
है .यहाँ 'ब्रह्म कुल द्रोही ' का अर्थ अन्य किसी जाती
 के व्यक्ति से नहीं है .जिस प्रकार ' देश द्रोही '
वाही व्यक्ति होता है जो अपने देश से द्रोह करता है
 अन्य कोई व्यक्ति नहीं .
      यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है की 'गन्धर्व '
 से ' ब्रह्म कुल द्रोही ' की चर्चा करना 
अचानक ही नहीं है .जटाऊ ने ब्राह्मण कुल में पैदा हुए
 रावण की करतूत श्री राम चन्द्र जी को 
बताई थी अतः यहाँ ' ब्रह्म कुल द्रोही ' से आशय रावण ही
 है . श्री राम चन्द्र जी आगे कहते 
हैं :-" मन क्रम वचन कपट तजि जो कर भूसर सेव ,
मोहि समेत विरंचि सिव बस ताकें सब देव".
       श्री राम जी कहते हैं - जो 'भूदेव ' ऐसे ब्राह्मण के
 सेवा मन क्रम वचन से कपट त्याग कर 
करता है उसे मैं ,ब्रह्मा और सिव सहित सभी देवता ताकते
 रहते हैं अर्थात उसकी किसी भी प्रकार 
से मदद नहीं करते हैं .
        ऐसा व्यक्ति या भूदेव जो शील और गुणों से हीन
 ब्राह्मण की तो पूजा करता है परन्तु 
शूद्र को ' गुन गनों' से युक्त ज्ञान में प्रवीण होने पर भी
 सम्मान नहीं देता है ,शाप से युक्त 
कठोर वचन कहे जाने योग्य दीन व्यक्ति है . ऐसा संतों ने कहा है :-
' सापत ताड़त परुष कहंता ,विप्र पूज्य अस गावहिं संता ' 
पूजिय विप्र सील गुन हीना ,सूद्र न गुन गन ज्ञान प्रवीना '
       इस प्रकार हम देखते हैं की सन्दर्भों से काट कर चौपाई
 दलित विरोधी नजर आती है .
यदि तुलसी दास जी दलित विरोधी होते तो ऐसा नहीं लिखते :-
' भगतिवंत अति नीचउ प्रानी ,मोहि प्राण प्रिय असी मम बानी '
      मुझे भक्ति युक्त नीच प्राणी भी प्राणों के सामान प्रिय हैं .यह
 मेरी घोषणा है .तुलसी दास
जी भविष्य की उद्घोषणा करते हैं की :- 
'सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं गयाना ,मेलि जनेउ लेहिं कुदाना . '
अर्थात सूद्र लोग ब्राह्मण की तरह उपदेश करेंगे तथा ब्राह्मणों 
से मिलकर ऊंचाइयों पर 
पहुंचेंगे .सूद्र ब्राह्मणों से कहेंगे की वह उनसे छोटे हैं अर्थात अपने
 को हेय मानेंगे तब 
ब्राह्मण उन्हें आँख से डांट कर कहेंगे की वह भी ब्राह्मण के
 सामान ब्रह्मको
जानने वाले हैं 
'बादहि  सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह से कछु घाटि ,
जाने ब्रह्म सो विप्रवर आँख देखावहिं डाटी.
इस प्रकार हम देखते हैं की श्री तुलसी दास जी ने दलितों
 के प्रति प्रेम -भाव ही दर्शाया है 
न की उनका विरोध या अहित किया है .शबरी के बेर श्री 
रामचंद्र जी द्वारा खाना ,निषाद 
-गुह और केवट को अपने गले लगाना कपट पूर्ण नहीं था .
इन सब का श्री राम चन्द्र जी 
ने हमेशा सम्मान ही किया है .नाव से उतरने पर केवट को
 अपनी पत्नी की अंगूठी  दे 
डाली
श्रम 
का शोषण नहीं किया .निषाद को अपने पास बिठाते हैं ;-
'सहज सनेह विवस रघुराई ,पूछी कुशल निकट बैठाई .'
आगे देखें :- 'आपु लखन पहिं बैठउ जाई ,कटि भाथी सर चाप चढ़ाई .'
 इतने नजदीक बैठाना क्या विरोध की स्थिति में संभव था ?
' बचन किरातन्ह के सुनत ,जिमि पितु बालक बैन '.
अर्थात श्री राम चन्द्र जी किरातों के वचन ऐसे सुन रहे हैं
 जैसे कोई पिटा अपने बच्चों के बचन 
सुनता है .--'स्व पाच सबर खस जमन जड़ पांवर कोल किरात .
                रामु कहत पावन परम हॉट भुवन विख्यात ' 
यानि मूर्ख ,और पामर ,चांडाल ,शबर ,खस ,यवन कोल 
और किरात भी राम का नाम लेकर 
परम पवित्र होकर त्रिभुवन में विख्यात हो जाते हैं .
इस प्रकार हम पाते हैं की राम चरित मानस में महा कवि
 तुलसी दास जी ने दलितों के प्रति 
अपना प्रेम ही प्रकट किया है .उन्हें दलित विरोधी कहना 
चाँद पर थूकने के समान है .
                यदि महा कवि तुलसी दास जी को समझना है 
तो उनकी चौपाइयों के 
समुद्र में गहरे तक गोता लगाना पडेगा तभी कीमती अर्थ
 प्राप्त हो सकते हैं वरना -
'जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखि तिन तैसी ' वाली
 बात ही चरित्रार्थ होती है .

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