बुधवार, 8 सितंबर 2010

५३-रामायण

             ( ३७ ) 
तू महल और मीनारें तो पास अपने रख ,
तेरे  लख हैं मेरी निगाहों में खख  ,
तू जा अपने पकवान तू खुद ही चख ,
मैं हूँ देखती तुझसे हर रोज लख ,
कमीनों से मैं बात करती नहीं ,
राजीलों को मैं मुंह लगाती नहीं .
              ( ३८ ) 
ये सुनते ही रावण का पारा चढ़ा ,
जबरदस्ती सीता को रथ में बैठा ,
उसे एक चुटकी में हर ले गया ,
सूनी थी हर इक ही ने आह बुका ,
मिले  रास्ते में जटाऊ  उसे ,
किया जख्म खुर्दह  लंकेश ने .
               ( ३९ ) 
इक अबला की खातिर वह जान से गए ,
इधर कोह पर चंद जेवर गिरे ,
वहां सब ने फ़ौरन उठा ही लिए ,
उन्हें बाँध इक पोटली में दिए ,
उधर रास्ते में मिले लक्ष्मण ,
कहा राम ने आये क्यों हो लखन .
              ( ४० ) 
लखन लाल ने बात सारी कही ,
की दोनों ने फिर आके देखी कुटी ,
कुटी उनकी बेतरह खाली मिली ,
तो मिट्टी ही पाँव की फ़ौरन छूटी,
हुए राम रो रो के फिर तो निढाल ,
हुआ उनका रो रो के बे तरह हाल .


 

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