मंगलवार, 7 सितंबर 2010

49-रामायण

               (२१ ) 
गई कान में जानकी के सदा ,
उन्होंने मानों लखन से कहा ,
रहे हैं तुम्हें तुम्हारे भाई बुला ,
मदद जाके उनकी करो तुम ज़रा ,
है भाई पे विपदा की जाकर हरो ,
मुझे तुम मेरे हाल पर छोड़ दो .
                 ( २२ ) 
लखन ने था समझाया उनको बहुत ,
मगर हो गई उनकी उल्टी ही मत ,
कहा पड़ गई तुझको अब खोटी लत ,
तू धोखे से मेरी बनाएगा गत ,
तेरी चाल में मैं न आउंगी कभी ,
मैं विष खा के लखन मरुंगी अभी .
                 ( २३ ) 
सुनी बात सीता की लखन ने जब ,
वह खो बैठे सुनते ही सब ताब व तब ,
वह इल्जाम ऐसा ही सुनते थे कब ,
संभाला धनुष और हिले उनके लब,
तू मां है मेरी और मैं बेटा तेरा ,
जो बीती है दिल पे हूं मैं जानता .
                  ( २४ )
 नहीं मुझको जाने में कोई भी आर ,
नहीं है मेरे दिल में कोई गबार ,
मैं जाता हूं और तू रहे होशियार ,
लगाता हूं मैं इक लकीर आर पार ,
करेगा जो पार इसको जल जाएगा ,
सजा अपने किये की वह पायेगा .
     

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