शनिवार, 11 सितंबर 2010

६१-रामायण

         ( २१ ) 
राम की ये बात सुन कर उड़ गए होश व हवास ,
दर हकीकत वह था अपनी याक्बत से न सनास ,
अपनी नादानी पे उसको हो गया खौफ व हरास  ,
आज मरते वक्त पाया याक्बत का कुल असास ,
आँख खोली औ यों उसने कहा रोते हुए ,
मेरे दाता मेरे भगवन पाप मेरे बख्श दे .
                ( २२ ) 
आप हैं नरबल के रक्षक  सबकी रक्षा कीजिये ,
आप मेरे पुत्र अंगद को शरण में लीजिये ,
मेरी बीवी को बहन आप अपनी समझिये ,
आप सारा राज ही सुग्रीव को दे दीजिये ,
योंकहा और रूह का टायर कफस से उड़ गया ,
राम चन्द्र जी ने सब को दान जीवन का दिया .
                 ( २३ ) 
कान में शीशा था पिघलाया की तारा के थे बैन ,
तीर सीने पर चले थे या की थे अंगद के नैन ,
लग गई सावन की झाड़ियाँ भूल बैठे दिन व रैन ,
रात की नींद लुटी और मिट गया था दिल का चैन ,
राम और सुग्रीव ने आखिर किये सब संस्कार ,
फिर मुहब्बत और याक्बत का बसा उजड़ा दयार .
                    ( २४ ) 
मिल गई सुग्रीव को खोई हुकूमत मिल गई ,
दौलत व शरबत व शोहरत और हसमत मिल गई ,
कुल जमाने की उन्हें तो यानी इज्जत मिल गई ,
नाजनीनों की अदा के साथ जोदत मिल गई ,
राम ने तो कर दिए पूरे सभी कॉल व करार ,
लेकिन उनकी जिंदगानी में न आई थी बहार 

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