मंगलवार, 7 सितंबर 2010

50-रामायण

     ( २५ ) 
ये कहते ही रुखसत हुए लक्ष्मण ,
चला करने लंकेश सीता हरण ,
रमाई भभूत और रंगा उसने तन ,
मगर खोट ही से था पर उसका मन ,
चला सीख लेने मगर कांपता ,
की दिल में था डर मन में इक चोर था .
                   ( २६ ) 
वह डरते हुए फ़ौरन आगे बढ़ा ,
कड़क कर लगाईं यों उसने सदा ,
है जोगी खडा दर पे आ भीख ला ,
रहेगी सुहागिन कहा वर्मुला ,
वह आगे बढ़ा पाँव ही जल गए ,
कहा भीख ऐसी न कोई भी दे .
                 ( २७ ) 
बंधी भीख जोगी न लेंगे कभी ,
तू बाहर निकल कर ही दे भीख अभी , अगर भीख देगी तू फल पायेगी ,
 कली दिल की फ़ौरन ही खिल जायेगी ,
 सुनी बात जोगी की सीता ने जब ,
निकल आई फ़ौरन कुटी से गजब .
                 ( २८ ) 
बढ़ाया ज्यों ही आगे सीता ने हात ,
दिखाई थी लंकेश ने अपनी जात ,
कहा जाने मन सुन ज़रा मेरी बात ,
मैं तेरा हूँ और तू है जाने जां हयात ,
न कर जिन्दगी अपनी बर्बाद तू ,
तू चल साथ कर लंका आबाद तू 

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