शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

40-रामायण

                                    (९१ )
ये न जख्म वालिद भी सह सके वह तो दार्फानी से चल बसे ,
मुझे तख़्त व ताज की क्या हवस की ये सारा  जग मुझ पे हँसे ,
मैं तो मोह माया में फंस गया मेरे राम जंगल में फंस गए ,
न खुदा मिला न सनम मुझे की अजीब चक्कर ही आज है ,
मैं तो राम जी ही को लाउंगा बिना उनके मेरी गुजर कहाँ ,
वही वर्क हैं वही वाद हैं वही जमीन वही हैं आसमां .
                                    ( ९२ ) 
ये सुना तो गुह ने यों कहा मेरी जान हाजिर है जाने मन ,
चलो साथ मैं भी चलूँगा अब मेरी फ़ौज हाजिर है और धन ,
करो उनके दर्शन ही आज मैं यही  मेरे दिल में है अब लगन ,
मुझे आसरा है राम का है उन्हीं के दम से मेरा ये दम ,
चले गुह भरत के साथ फिर गए भारद्वाज  आश्रम ,
उन्हें अलम वां से ये हो गया की है चित्रकूट में अब कदम .
                                  ( ९३ ) 
चले जा रहे थे हंसी खुशी सभी राम चन्द्र की चाह में ,
की पशु भी भागते जा रहे क्यों न राम चन्द्र से ये कहें ,
ज्यों ही देखा हाल ये राम ने कहा किस तरह से ये दुःख  हटें ,
ये अनाथ बनके हैं फिर रहे हैं इन्हें भी गम तो ये क्यों कहें ,
कहा लक्ष्मण से ये जाने मन तुम्हीं बात देखो ये क्या हुई ,
ये पशु तो भागे जा रहे इन्हें बेकरारी सी हो गई .
                               ( ९४ ) 
सुनी बात राम की चढ़ गए सभी एक पत्थर पे लक्ष्मण ,
ज्यों ही गई नजर तब ही देखा क्या चले आते भरत और शत्रुघ्न .
की है लाव लश्कर भी साथ में की हैं साथ उनके भी अवध्जन ,
ज्यों ही देखा गुह को साथ तो जला उनका फ़ौरन ही तन बदन ,
कहा राम चन्द्र से भाई जी यहाँ और ही गुल उठे ,
हमें मारने ही के वास्ते वह लो भरत चरत हैं आ रहे .

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