मंगलवार, 7 सितंबर 2010

48-रामायण

                    ( १७ )
 मैं ज़िंदा तुझे वरना छोडूं नहीं ,
सुना सब तू दिल  में कहा चल वहीँ ,
की इस के तू हाथों से मरना नहीं ,
जो मरना है रघुवर को पाऊं कहीं ,
उसी से मिलेगी   मुझे भी निजात ,
उसी के करम से बनेगी हयात .
                     ( १८ ) 
ये कहते ही वह बन गया इक हिरन ,
की सुनहरी उसका था सारा बदन ,
अनोखी थी चाल और अनोखी थी छबन,
गया थे जहां राम सीता लखन ,
कहा जानकी ने हिरन चाहिए ,
ये भला ये मासूम ला दीजिये .
                    ( १९ ) 
सुनी राम जी ने ज्यों ही इल्तजा ,
ये हुकुम उनसे आखिर न ताला गया ,
धनुष बाण लेकर लखन से कहा ,
मैं लेकर ही अब तो हिरन आउंगा ,
यहीं तुम रहो आऊं जब तक न मैं ,
कहीं राक्षस  ही न तंग अब करें .
                     (२० ) 
कहा राम ने और आगे बढे ,
हिरन के ताकिब में बढ़ते चले ,
गए दूर काफी मगर जड़ में थे ,
चलाया ज्यों ही तीर इक खींच के ,
हिरन गिर पडा और आई सदा ,
मुझे लक्ष्मण आके तू ही बचा .

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