मंगलवार, 7 सितंबर 2010

५२-रामायण

          ( ३३ ) 
खुदा की खुदाई से तू खौफ खा ,
तू खुद को सदा निगाह बद से बचा ,
यही आखिर से देगी आफत मचा ,
तू सूरत ज़रा देख आयना ला ,
बहन बेटी अपनी समझ तू मुझे ,
यही सीख देती हूँ रावण तुझे .
                    ( ३४ ) 
तू शैजोर मुझसे न बन जो  निहार ,
मैं हूँ जानती खूब तेरा विकार ,
तू नहीं अपने कास बल की डींगें न मार ,
की धनुष इक उठा ने में था तुझको आर ,
तू मुझ को स्वयंवर से लाता अगर ,
तेरे बल की दुनिया को होती खबर ,
                     ( ३५ ) 
ये अच्छे नहीं तेरे तौर व करीं ,
कभी बेटियाँ तूने औरों से लीं ,
यों ही ठगों की तरह ही हरीं ,
कभी बेटियाँ तूने अपनी भी दीं ,
तू लग राह अपनी मुझे छोड़ दे ,
तू नहीं इक मुसीबत गले तो न ले .
                     ( ३ ) 
तेरे राज में हैं उचक्के सभी ,
किसी ने तुझे मति  न माकूल दी ,
मैं करती हूँ रघुवर ही की बंदगी ,
उन्हें पर है निर्भर मेरी जिन्दगी ,
तेरे जैसे पानी हैं मेरा भरें ,
की जूती मेरी साफ़ तुझसे करें .

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