( १०३ )
कहा रामचंद्र ने जाने मन लो खडाऊं मेरी ये जाओ तुम ,
मुझे चौदह बरस का हुकुम है यही बात दिल में टिकाओ तुम ,
की मैं एक दिन भी लगाउंगा ये तो बात दिल में न लाओ तुम ,
ये मैं वायदा तुम से हूँ कर रहा की न जान से जहां रजाओ तुम ,
इसी वक्त दे दीं खडाऊं फिर चले भरत लाल उन्हें सर पर ले ,
चले सब अयोध्या की ओर फिर की थे महिमा राम की गा रहे .
( १०४ )
की खडाऊं तख़्त पे रख ही दीं गए जब अयोध्या में भरत जी ,
वह तो सेवादार ही बन गए की था लैब पे केवल राम जी ,
किया राज राम के नाम पे ये मुराद पूरी भी हो गई ,
नहीं इस में कुछ भी तो खोट है की थे वह सरापा हो बंदगी ,
किया नंदी ग्राम में फिर लिया राम जैसा ही जोग वां ,
वह तो ऐश व इशरत से तंग थे न था ऐश व इशरत का भोग वां .
(105 )
तेरे दम से दुनिया ये चल रही तू मुर्दा रूहोंकी जान है ,
तेरे दम से जाहिदे बुलबुले तेरे दम से आविदे शान ,
तू ही याक्बत का असास है तू है मुर्फत का गुमान है ,
तेरे दम से शबनम में हंसी है सहन तेरे दम से फूलों में जान है ,
हुआ वाब ख़त्म ये खर्श तेरी रहमतों का करम हुआ ,
की मैं अपनी मंजिल पे आ गया मेरे दिल का इक इक भरम मिटा ,
bahut sundar prastuti...
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