सोमवार, 6 सितंबर 2010

४3-रामायण

       ( १०३ )
कहा रामचंद्र ने जाने मन लो खडाऊं मेरी ये जाओ तुम ,
मुझे चौदह बरस का हुकुम है यही बात दिल में टिकाओ तुम ,
की मैं एक दिन भी लगाउंगा ये तो बात दिल में न लाओ तुम ,
ये मैं वायदा तुम से हूँ कर रहा की न जान से जहां रजाओ तुम ,
इसी वक्त दे दीं  खडाऊं फिर चले भरत लाल उन्हें सर पर ले ,
चले सब अयोध्या की ओर फिर की थे महिमा राम की गा रहे .
                                    ( १०४ ) 
की खडाऊं तख़्त पे रख ही दीं गए जब अयोध्या में भरत जी ,
वह तो सेवादार ही बन गए की था लैब पे केवल राम जी ,
किया राज राम के नाम पे ये मुराद पूरी भी हो गई  ,
नहीं इस में कुछ भी तो खोट है की थे वह सरापा हो बंदगी ,
किया नंदी ग्राम में फिर लिया राम जैसा ही जोग वां ,
वह तो ऐश व इशरत से तंग थे न था ऐश व इशरत का भोग वां .
                                    (105 )
     तेरे दम से दुनिया ये चल रही तू मुर्दा रूहोंकी जान है ,
तेरे दम से जाहिदे बुलबुले तेरे दम से आविदे शान ,
तू ही याक्बत का असास है तू है मुर्फत का गुमान है ,
 तेरे दम से शबनम में हंसी है सहन तेरे दम से फूलों में जान है ,
हुआ वाब ख़त्म ये खर्श  तेरी रहमतों का करम हुआ ,
की मैं अपनी मंजिल पे आ गया मेरे दिल का इक इक भरम मिटा   ,
                         

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