गुरुवार, 16 सितंबर 2010

९०--रामायण

         ( २१ )
 दोपहरी   के बाद ही आखिर पुष्प विमान अवध में उतरा ,
लखन लाल और राम चन्द्र को सबने उसमें बैठा देखा ,
हाथ लगाने से हो मैली साथ ही बैठी राम की सीता ,
सुग्रीव और विभीषण अंगद जामवंत नल नील समीता ,
सबक खरामी रंग पे आई वादे सबा ने भी पर तौले ,
गुलशन गुलशन महक रहा था कलियों ने भी घूघट खोले .            

                 ( २२ ) 
पुष्प विमान जमीं पर उतरा हौले हौले धीरे धीरे ,
राम चन्द्र जी सबसे पहले उस विमान से बाहर निकले ,
उनके पीछे ठुमक ठुमक करती निकली राम की  सीते ,
वानर सेना बाद में आई लखन लाल जी पहले निकले ,
तीनों माताओं को बढ़ कर तीनों ने फिर शीश नवाया ,
आशीर्वाद गुरु का लेकर भरत चरत को गले लगाया .
                 ( २३ ) 
कौशल्या कैकेई सुमित्रा ने फिर खोया धन पाया ,
भरत चरत दोनों की आखिर संवर गई ही नरजिस काया ,
पहले  आँखें चार हुईं जब नजरों ने था धोखा खाया ,
लेकिन देखा गौर से ज्यों ही तीनों ने सावन बरसाया ,
बच्चे बूढ़े पुरुष और नई देख रहे थे झूम रहे थे ,
इतना था तूफ़ान खुशी का धरती अम्बर घूम रहे थे .
                  ( २४ ) 
घूम मचाते हँसते गाते इसी अरह से कुछ दिन बीते ,
राज तिलक फिर हुआ राम का धूम धाम से बहुत शान से ,
राम राज में शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते ,
उनकी कोई कमी नहीं थी दूध और घी के डराया बहते ,
सच्चे सुच्चे लोग थे सारे दान की महिमा सबने जानी ,
राम राज में हो जाया था दूध का दूध पानी   का पानी .
                    ( २५ ) 
तू ही मेरा मात पिता तू ही मेरा बंधु भगवन ,
ऊ अविनाशी दुःख कका नाश तुझसे कटते मोह के बंधन ,
तू ही मारे तू ही तारे तू ही मेरा है जीवन धन ,
तेरे बल पर मैंने भी तै करली समपूरन रामायण ,
मेरे डाटा मेरी झोली जैसे भर दी सब की बहरिओ ,
जैसी कृपा मुझ पर की है वैसी कृपा सब पर करिओ .
   

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