शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

प्यार के जुर्म की ये सजा दी गई

प्यार के जुर्म की ये सजा दी गईं .दूरियां दो दिलों की बढा दी गईं ।
जिन लबों पर हंसी खेलती थी सदा ,आज खामोशियाँ हैं बिठा दी गईं ।
जिस शजर पर परिंदों का था आशियाँ ,बिजलियाँ सैकड़ों गिरा दी गईं ।
दो कदम भी जो आगे बढा ना सकें ,पांव में बेड़ियाँ यूँ लगा दी गईं ।
देखने को तरसते रहें उम्र भर ,थी दीवार ऊंची उठा दी गईं ।
लोग पालें रहें बस गलतफहमियां ,कुछ झूठी खबर थीं उड़ा दी गईं ।
बस धुंआ ही धुंआ अब दिखाई पड़े ,जो शरारे को ऐसी हवा दी गईं .

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