झूठ का पर्दा जब आँखों से हट जाता है ।
बढ़ते -बढ़ते प्यार अचानक घट जाता है ।
छोटी सी इक बात इस तरह चुभ जाती है ,
दिल कागज़ सा ठीक बीच से फट जाता है ।
जिनके बिना नहीं जी पाते इक लम्हे भी ,
सारा जीवन बिना उन्हीं के कट जाता है ।
लाख बुलाना भी चाहो नहीं भूलते ,
गुजरा हुआ वाक्य जैसे रट जाता है ।
जिसे बांटना नामुमकिन होता है फिर भी ,
इक दिन वो रिश्ता हिस्सों में बंट जाता है ।
बड़ा हंसी लगने लगता है जीवन सारा ,
घना कोहरा यादों का जो छंट जाता है
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