भूल न पाएंगे हम इस बार की होली ।
आपने आकर जो खेली प्यार की होली ।
बंद थी कलतलक प्राचीरों के भीतर ,
आम जन तक आ गई दरबार की होली ।
रंग रिश्तों का है क्या ये आज ही जाना ,
बन गई होली जो इक परिवार की होली ।
किस कदर थे अजनबी हम अपने ही घर में ,
अपनेपन से भर गई सरकार की होली ।
भोगना भी है नहीं पर भागना भी है नहीं ,
कह रही है रंगों की बौछार की होली ।
बूँद सागर बन गई मन धुल गया कलुषित ,
आपने खेली जो आत्मोद्धार की होली.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें