सारी दुनियां भली बुरे तो केवल हम हैं ।
जितने भी हैं दोष गिनो सब के सब कम हैं ।
जिसको समझा बेगाना वह अपना निकला ,
पर अपनों में बेगाने पाए हरदम हैं ।
सीधीथी जो बात नहीं वह सीधी निकली ,
उसके भीतर जाने कितने पेच औ ख़म हैं ।
जख्मों पर हैं जख्म सभी ही देने वाले ,
पर बनकर न आये कभी भी वह मरहम हैं ।
खुशियों कि उम्मीद किये बैठे हैं उससे ,
जिसके दामन में पहले से लाखों गम हैं ।
वह तहजीब सिखाने निकले हैं दुनियां को ,
आज तलक जो दिखलाई देते आदम हैं ।
सब कुछ बदल गया है लेकिन वह ना बदले ,
जिन्हें बदलते बदल चुके कितने मौसम हैं .
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें