बुधवार, 7 जुलाई 2010

मय मैंने जो ढाली

आओ आज पिलाता हूँ मैं, मय मैंने जो ढाली ।
जिससे होता नहीं कभी भी जाम किसी का खाली ।
पीकर इसको झूम उठेगी तबियत भी मस्ती में ,
रूह तुम्हारी मदहोशी में गाएगी कव्वाली ।
थिरक उठेगें पैर तुम्हारे कितना भी रोकोगे ,
खुद को दोगे दाद खुद ही तुम बजा बजा कर ताली ।
यकबयक गिर जायेंगीं सब नफरत की दीवारें ,
मिट जायेंगीं गलतफहमियां दिल में हैं जो पालिन ।
बड़ा सुहाना तुम्हें लगेगा मौसम आने वाला ,
खुशनुमा सुबह में ढल जायेगी रात अंधेरों वाली ।
बेमकसद ,बेसबब जिन्दगी भी मंजिल पा लेगी ,
काँटों भरी तुम्हारी राहें होंगीं फूलों वाली ।
दामन में खुशियाँ भर कर तुम ये महसूस करोगे ,
मानों ईद ,दिवाली ,होली तुमने आज मनाली .

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