शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

मुस्कराने लगे

चोट दिल पर लगी मुस्कराने लगे ।
इक गजल फिर नई गुनगुनाने लगे ।
अश्क आँखों के अपने सभी पी लिए ,
जख्म तमगों से दिल पर सजाने लगे ।
लोग समझे ख़ुशी की हुई बात है ,
बेवफा से वफ़ा जो निभाने लगे ।
जानता था वो मांगेगा कीमत बड़ी ,
यूँ चुकाने में जिनको ज़माने लगे ।
रास आये अँधेरे उन्हें इसकदर ,
दिए जल रहे थे बुझाने लगे ।
जब यकीं पर हीबाकी यकीं न रहा ,
फैसले थे सभी डगमगाने लगे .

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