कौन करता है मुहब्बत मुफलिसी से ।
जाओ करूँ शिकवा शिकायत मैं किसी से ।
है किसे फुर्सत जरा भी सोचने की ,
मौत है अब दूर कितनी जिन्दगी से ।
गमजदा क्यों आदमी लगते हमेशा ,
दुसरे हर आदमी को अजनबी से ।
दर्द सीने में छुपाकर मुस्कराना ,
हर ख़ुशी वाला सिखाता है ख़ुशी से ।
क्या बचने की रखूं उम्मीद उनसे ,
जो किनारा काटते है दूर ही से ।
मैं गुजारिश प्यार की अब न करूंगा ,
कर लिया है फैसला मैंने अभी से ।
देखकर इतना ज्यादा यूँ फरेबी ,
उठ गया अब तो भरोसा आदमी से .
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kafi bhav purna rachna...
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