शनिवार, 3 जुलाई 2010

जिन्दगी आराम से

कट रही है जिन्दगी आराम से ।

बैठ जाता हूँ जो पीने शाम से ।

भूल जाता हूँ सभी गम यकबयक ,
जाम टकराते बराबर जाम से ।
मैं मुसलसल रिंद की मानिंद ही ,
खूब पीता बेखबर अंजाम से ।
देखकर हालत मिरी कहते सभी ,
हो न हो यह तो गया अब काम से ।
याद उनको भी नहीं तारुफ़ मीरा ,
जो कभी वाकिफ रहे थे नाम से ।
हो गया बदनाम जब पीता न था ,
फर्क क्या पड़ता किसी इल्जाम से ।
वह बुलाने पर कभी आया नहीं ,
अब बुलाता है मुझे पैगाम से .

1 टिप्पणी: