इस देश के हालात अब अच्छे नहीं लगते ।
सच बोलते हैं लोग सच्चे पर सच्चे नहीं लगते ।
दागी लिबास का अजब निकला है इक चलन ,
दामन पे लगे दाग जो भद्दे नहीं लगते ।
बच्चे उठाये हाथ में नारों की तख्तियां ,
बच्चों कि उम्र में भी ये बच्चे नहीं लगते ।
ए चाँद मत निकला करो भूखों के सामने ,
इनके इरादे यों जरा अच्छे नहीं लगते ।
इक तेज आंधी भर चली तो गिर ही जायेंगे ,
ए पाप के फल प़क चुके कच्चे नहीं लगते ।
इक कलमकश ने हाथ में लेली है फिर कलम ,
अब कारनामे जुर्म के छुपते नहीं लगते .
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