शनिवार, 10 जुलाई 2010

अच्च्छे नहीं लगते

इस देश के हालात अब अच्छे नहीं लगते ।


सच बोलते हैं लोग सच्चे पर सच्चे नहीं लगते ।


दागी लिबास का अजब निकला है इक चलन ,


दामन पे लगे दाग जो भद्दे नहीं लगते ।


बच्चे उठाये हाथ में नारों की तख्तियां ,


बच्चों कि उम्र में भी ये बच्चे नहीं लगते ।


ए चाँद मत निकला करो भूखों के सामने ,


इनके इरादे यों जरा अच्छे नहीं लगते ।


इक तेज आंधी भर चली तो गिर ही जायेंगे ,


ए पाप के फल प़क चुके कच्चे नहीं लगते ।


इक कलमकश ने हाथ में लेली है फिर कलम ,

अब कारनामे जुर्म के छुपते नहीं लगते .

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