शनिवार, 10 जुलाई 2010

तबियत है घबराती

तन्हाई से जब भी मेरी तबियत है घबराती ।
याद तुम्हारी पास हमारे चुपके से आ जाती ।
तभी अचानक मैं अतीत में अपने गुम हो जाता ,
चलती फिरती तस्वीरों कि महफ़िल सी सज जाती ।
मुद्दत से मुस्कान लबों कि जो मुरझाई सी थी ,
सच कहता हूँ इन होंठों पर बरबस खिल जाती ।
तीरे प्यार की आंच गुनगुनी बड़ा सुकून सा देती ,
जब हौले हौले से दिल के जख्म मिरे सहलाती ।
एक अजनबी सी सूरत जो दिखती थी दर्पण में ,
मेरे सामने जानी पहचानी बनकर आ जाती ।
काश वक्त का पहिया कुछ पल यूँ ही ठहर भर जाता ,
वर्ना फिर किस लिए जिन्दगी हरदम अश्क बहती.

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