जिन्दगी की बस यही उपलब्धियां यारो ।
इक कसक ,अफ़सोस आंसू तल्खियाँ यारो ।
जो कभी चाहा कि छू लूँ चाँद का चेहरा ,
हो गईं मानो अपाहिज उँगलियाँ यारो ।
गीत गाते थे परिंदे जिस शजर पर कल ,
गिर पड़ीं उस पर हजारों बिजलियाँ यारो ।
रात दिन रोया किया मैं उन गुनाहों पर ,
नाम जिनको दे दिया मजबूरियां यारो ।
मैं कसम खाकर यकीं से कह नहीं सकता ,
क्यों नहीं बरसीं जमीं पर बदलियाँ यारो ।
किस बात पर नाज है वो खुद वही जाने ,
बैरंग वापिस आ गईं जो चिट्ठियां यारो .
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