शनिवार, 10 जुलाई 2010

आंसू बहा कर कुछ नहीं मिलता

किसी की याद में आंसू बहा कर कुछ नहीं मिलाता ।
ग़मों का बोझ यों तनहा उठा कर कुछ नहीं मिलता ।
उन्हें मंजिल नहीं मिलती जो खाबो में चला करते ,
हवा में धूल पैरों से उड़ा कर कुछ नहीं मिलता ।
चुभें दिन रात जो दिल में किसी नश्तर सा रह रह कर ,
उसी के खाब पलकों पर सजा कर कुछ नहीं मिलता ।
जहाँ पर चोट खाई हो कभी तुमने मुब्बत में ,
उसी चौखट पर सर अपना झुका कर कुछ नहीं मिलता ।
मिटने को तेरी हस्ती रचीं हों साजिशें जिसने ,
उसी के प्यार में खुद को मिटाकर कुछ नहीं मिलता ।
बड़ी ही खूब सूरत है मिली जो जिन्दगी तुमको ,
इसे अपने लिए दोजख बना कर कुछ नहीं मिलता .

1 टिप्पणी:

  1. कडवी सचाई को खूबसूरत शब्‍दों के खोल में लपेट कर रची आपकी यह रचना एक बेचैन कर देने वाला सुकून लि‍ए हुए है। बेचैनी यादों की है और सुकून उसे छि‍टककर यूं बि‍खेर देने का। अपने पास रख रहा हूं आपकी यह रचना। अक्‍सर छि‍टककर बि‍खरने में मदद करेगी।

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