रविवार, 11 जुलाई 2010

क्या फायदा

लब मेरे गर कभी मुस्करा न सकें ,लाख गुल मुस्कराएँ तो क्या फायदा ।
गिन्दगी के अँधेरे जो मिट न सकें ,लाख शम्मा जलाएं तो क्या फायदा ।
चाक दिल को लिए हम सिसकते रहे ,पर शिकवा कभी भी न उनसे किया ,
जख्म दिल के मेरे जो भर न सकें ,लाख मरहम लगायें तो क्या फायदा ।
उनके आबाद होने का जलवा बहुत ,मेरी बर्बादी का कोई चर्चा नहीं ।
आशियाँ फिर मेरा जो बन न सके लाख घर वो बसायें तो क्या फायदा ।
उनकी महफिर जमीं जाम कितने चले ,तश्न -ए- लब हम लिए पर खड़े ही रहे ,
प्यास दिल कि मेरी जो बुझ न सके ,लाख जमजम पिलायें तो क्या फायदा ।
मुझको वीराने में छोड़ कर वो गए ,अश्क आँखों से मेरी निकलते रहे ,
याद उनकी मेरा दिल भुला न सके ,लाख गर वो भुलाएँ तो क्या फायदा .

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