रविवार, 11 जुलाई 2010

जिन्दगी इतनी कभी दुश्वार तो न थी .

जिन्दगी इतनी कभी दुश्वार तो न थी ।
ये प्यार वहा दोस्ती व्यापार तो न थी ।
दुश्मनों के बीच भी न खौफ था हमें ,
दोस्तों के हाथों में तलवार तो न थी ।
थे घरों के दरम्यान कुछ फासले मगर ,
दो दिलों के बीच में दीवार तो न थी ।
थे चमन में फूल भी खारों के साथ में ,
मौसमों की तब कोई सरकार तो न थी ।
कौन जीता था यहाँ खाने के वास्ते ,
आबरू बिकने को यों तैयार तो न थी ।
ईश्वर ,खुदा के नाम में था फर्क -ए-तलफ्फुज ,
मजहबों में रूह गिरफ्तार तो न थी .

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