शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

मंनाएं कभी

रूठे हुए हैं मनाएं कभी ।
रस्में मुहब्बत निभाएं कभी ।
मैं छाहता हूँ उन्हें आज भी ,
येसोच कर लौट आयें कभी ।
उनके सिवा और भाता नहीं ,
शुबहा जरा भी न लायें कभी ।
मैंने भरोसा हमेशा किया ,
खुद भी भरोसा दिलाएं कभी ।
इतनी बड़ी बात कोई न थी ,
जिसको न वो भूल पायें कभी ।
दोनों चलो गलतियाँ मान लें ,
ये दूरियां फिर न लायें कभी ।

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