शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

वक्त के साथ चलना न आया मुझे

वक्त के साथ चलना न आया मुझे ।
दायरे से निकलना न आया मुझे ।
वक्त था कि पिघलता रहा बर्फ सा ,
वक्त जैसा पिघलना न आया मुझे ।
दिन ब दिन वाकी का रुख बदलता गया ,
इस तरह से बदलना न आया मुझे ।
वक्त रौशन रहा इक दिये की तरह ,
वक्त के साथ जलना न आया मुझे ।
वक्त छलता रहा नित नए रूप में ,
वक्त के साथ छलना न आया मुझे ।
वक्त तकदीर था बन गया एक दिन ,
वक्त के साथ ढलना न आया मुझे .

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