मंगलवार, 6 जुलाई 2010

अकेलापन

तेरे बिना मुझे लगता है बहुत अकेलापन ।
नहीं कहीं भी चैन जरा सा पता है ये मन ।
मुझे अजनबी सी लगती है अपनी ही सूरत ,
जब भी देखा करता हूँ मैं भूले से दरपन ।
अपनी ही परछाई से मैं घबरा जाता हूँ ,
इक वीराना सा लगता है घर का ही आँगन ।
दावाजे पर दस्तक देती कभी हवा आकर ,
दिल दिम्माग में होने लगती अनजानी सन सन ।
तेरी तस्वीरों से बातें करता रहता हूँ ,
हरपल बढ़ता ही जाता मेरा दीवानापन ।
इन्तजार है अब बस तेरे आने का मुझको,
वर्ना मेरी साँसे कर देंगी देखो अनशन .

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