मंगलवार, 6 जुलाई 2010

तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच न जाने कैसा रिश्ता यार सनम ,
हर दिन हर पल बढ़ता जाता मुझको तुझसे प्यार सनम ।
मैं दीवाना अगर हो गया मुझको दोष न देना तुम ,
लिख डालेंगे जाने कितने अफ़साने अखबार सनम ।
मैंने रब से सच्चे दिल से मांगी है बस एक दुआ ,
तेरा साथ मिले यूँ मुझको जनम -जनम हर बार सनम ।
जितने भी हों तेरे हिस्से के सारे गम मुझे मिलें ,
सारी खुशियाँ इस दुनियां की तुझ पर कर दूं वार सनम ।
वैसे तो गुलशन में खिलते फूल हजारों जुदा -जुदा ,
पर मेरे जीवन की बगिया तुझसे है गुलजार सनम ।
तुम मुझसे कह डालो अपने दिल के सारे राज छुपे ,
मैं भी खुली किताब की मानिंद बन जाऊं दिलदार सनम .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें