रविवार, 11 जुलाई 2010

अनजाने में

मुझ से ही कुछ भूल हुई है हो न हो अनजाने में ।
वरना प्यासे क्यों रह जाते लब मेरे मैखाने में ।
हंसने के भी नियम कायदे काश न तोड़े होते जो ,
शायद पलकें नम न होतीं थोडा मुस्काने में ।
साकी ने तो मुझे पिलाए भर भर जाम मुसलसल ही ,
मुझको ही पीना ना आया मय अपने पैमाने में ।
प्यार मुहब्बत करने वाले खुद गरज भला कब होते हैं ,
इन्हें ख़ुशी तो बस मिलती है खुद के ही मिट जाने में ।
अपने दिल से जिसको चाहा उसे खबर भी ना होने दी ,
रहे देखते खामोशी से गैरों का हो जाने में .

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